जब तक मनुष्य कर्म करता है, तभी तक वह जिंदा भी है।

बेकार पड़े लोहे को जंग खा जाती है, उसी प्रकर निष्क्रिय व्यक्ति की शक्ति को उसकी निष्क्रियता ही खा जाए तो इसमे संदेह की क्या बात। जब तक मनुष्य कर्म करता है, तभी तक वह जिंदा भी है। साधन-संपन्न और शक्तिवान भी। वह तभी तक है जब तक उसके हाथ में कर्म जिंदा है।

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