सत्य तीर्थ है, क्षमा इन्द्रिय नियंत्रण भी तीर्थ है। सरलता भरा स्वभाव एवं जीव दया भी तीर्थ है। दान, मन का संयम, संतोष, ब्रह्मचर्य, प्रियवचन बोलना भी तीर्थ है। ज्ञान धैर्य, तप को भी तीर्थ कहा गया है तीर्थ मे सबसे श्रेष्ठ तीर्थ है अंतःकरण की पवित्रता जिसने दम रूपी तीर्थ मे स्नान कर मन के मैल को धो डाला वही शुद्ध है
Month: May 2016
निरंहकारी बनो।
निरंहकारी बनो। निरंहकारी का प्रथम चिन्ह है वाणी की मिठास। वाणी व्यक्तित्व का हथियार है। अपनी विनम्रता,दूसरो का सम्मान व बोलने में मिठास,यही व्यक्तित्व के प्रमुख हथिरयार है।
चरित्र मानव जीवन की नींव है।
चरित्र मानव जीवन की नींव है। यदि नींव जर्जर और कमजोर होगी,तो जीवन का देवालय विश्वास पूर्वक खड़ा न रह सकेगा। बुरे से बुरे आदमी भी चाहे ऊपर से मानता या कहता न हो,पर मन ही मन सच्चरित्र व्यक्ति के प्रति एक आदर का भाव रखता है,उससे डरा भी करता है।
शरीर माने श्रम और समय इन्हे भगवान के खेत में बोओ।
शरीर तुम्हारे पास है। शरीर माने श्रम और समय इन्हे भगवान के खेत में बोओ। इसके लिए तुम अपने श्रम,समय और शरीर को खर्च कर डालो वह सौ गुणा होकर मिलेगा ।
ऊँचे उद्देश्यों का होना सराहनीय है पर उनकी सफलता के लिए ऐसे कर्मठ समर्थकों की मण्डली चाहिए जो लक्ष्य के प्रति समर्पित हो मानो वही इमान है और वही भगवान है।
परिस्थितियों मनुष्य के अपने हाथ की बात है।
परिस्थितियों मनुष्य के अपने हाथ की बात है। सदा जीतने वाला पुरुषार्थी वह जो सामर्थ्य के अनुसार परिस्थितियों को बदलता देता है, किन्तु यदि वे बदलती नहीं तो स्वंय अपने आपको उन्हीं के अनुसार बदल लेता है। उन्नति की मूल वस्तु महत्वाकांक्षा है।
कष्ट को झेलने का एक मात्र तरीका है प्रभु के प्रति अपार एवं अंतहीन आस्था!
कष्ट को झेलने का एक मात्र तरीका है प्रभु के प्रति अपार एवं अंतहीन आस्था!कभी भी न दु:खो से घबराना चाहिए और न इनसे पलायन करना चाहिए। अपने कष्टो को शांत और धैर्य पूर्वक झेल जाना चाहिए। कष्ट से बिना घबराए उसे धैर्य पूर्वक सहन करना चाहिए।