यदि गलतफहमी या द्वेषवश आलोचना की गई है तो उसे हँसकर उपेक्षा से टाल देना चाहिए। जिसमें वास्तविकता न होगी ऐसी बात अपने आप हवा में उड़ जायगी। मिथ्या निन्दा करने वाले क्षणभर के लिए ही कुछ गफलत पैदा कर सकते हैं पर कुछ ही समय में वस्तु स्थिति स्पष्ट हो जाती है और पर कीचड़ उछालने वाले को स्वतः ही उस दुष्कृत्य पर पछताना पड़ता है। मिथ्या दोषारोपण से कभी किसी का स्थायी अहित नहीं हो सकता। क्षणिक निन्दा स्तुति का कोई मूल्य नहीं। पानी की लहरों की तरह वे उठती और विलीन होती रहती हैं।
Advertisements