भय चाहे बाह्य हो अथवा आंतरिक,वह हमें अपने जीवन की इस प्रगति से सदा वंचित रखता है। नकारात्मक सोच अनावश्यक चिंताओं को जन्म देती है और यही चिंताएँ धीरे-धीरे भयावह भय का रूप धारण कर लेते हैं, जो हमारे व्यक्तित्व परग्रहण की तरह छा जाता है। भय से मुक्त जीवन जीने के लिए हमें सबसे पहले अपनी सोच को बदलना होगा।
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